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CORONA एक आजमाईश या अज़ाब.....?
आज पूरी इंसानी बिरादरी एक अजीब कशमकश का शिकार है।जिंदगी की रफ़्तार कम तो हुवी लेकिन जिंदगी अपनी डगर पर चली जा रही है।बहुत कुछ ऐसा हुआ जिसका अंदाजा नही था।बहुत सारे भरम टूटे ।और एक बहुत बड़ा भरम ये भी टूट गया कि हम नही कमाएंगे तो क्या खायेंगे, साबित हुआ कि अल्लाह किसी को भूखा नही रखता ।एक अहम सवाल हमारे सामने जो आकर खुद ब खुद ही खड़ा हो गया कि आख़िर इंसानियत के साथ ऐसा क्यों हो रहा है ? तो बहुत सादा जवाब बनता है कि हम इंसानो ने अपने रब को नाराज कर दिया।किसने ,कब,कैसे किया यह तो हमसे ज्यादा कोई नही जानता।अल्लाह हमसे क़ुरान में फरमाता है कि हमारे बुरे आमाल की वजह से खुश्की ओर तरी में हमने एक कहर बरपा कर दिया है।मसाजिद वीरान हो गयी और कब्रिस्तान आबाद कर दिए हमने।ये सब हमारे अमलो की सजा है।CORONA के बाद जिन इंसानो ने अपने ईमान को ओर मजबूत कर लिया और पहले से ज्यादा जो अपने रब के नजदीक आजिज़ी ओर ख़ौफ़ वाली हालात के साथ उसको याद करने लगे उन के लिए ये हालात आजमाईश की मानिंद हैं लेकिन Corona ,के बाद भी जिनकी जिंदगी में तब्दीली नही आई ओर जो पहले से ज्यादा खुद को अल्लाह से दूर करने लगे,जिनकी जिंदगी की गुमरहकून चलत फिरत पहले सड़को ,मुहल्लों ,चौराहो तक सीमित थी लेकिन अब जो अपने ऐश मुर्दो के आशियानों ओर मुर्दो के पास रहकर पूरे कर रहे है समझ लो कि ये हालात उनको किस मोड़ पर ले गए।अभी भी कुछ नही हुआ ,हम सब गुनाहगार हैं, खताकार हैं, मुज़रिम हैं अपने रब की अदालत के लेकिन इस्तग़फ़ार ओर माफी अभी मिल सकती हैं।अभी हम सिर्फ कब्रो के करीब ही पहुंचे हैं अभी उसके अंदर नही गये, अल्लाह से माफी मांगते हैं कि वो जात हमे माफ करदे।छोटा बच्चा जब अपनी कॉपी में पेंसिल से गलती करता है तो उसे रबड़ से साफ करना सिखाया जाता है ,lekin हमारे इन गुनाहो को सिर्फ औऱ सिर्फ़ इस्तग़फ़ार से ही मिटाया जा सकता है।ऐसे वक्त में तौबा की जरूरत है।अफसोस लोगोँ ने इसे मोटी कमाई का सबब बना लिया।जरा तसव्वुर करो कि हजरत आदम अ० का एक बेटा जिसके पास कोई काम धन्धा नही है, पूरा शहर बन्द है, पूरी दुनिया बन्द है, घर पर बूढ़े म बाप हैं, भूखे बहन भाई और कमज़ोर शिफ़्त बच्चे हैं, ऐसे में जैसे कैसे करके बेचारा अपनी जेबो ओर घर के किसी कोने में पड़े पेसो को जोड़ कर ,अपने ही किसी भाई की दुकान पर जाता है ,क्या मिलता उसको मायूसी। बिसकिट्स, का एक पैकेट लेने के लिए उसे एक बड़ा मुनाफा देना पड़ रहा है।कैसे हो गए हम।सोचो वो दुकानदारों जिन्होंने ये समझ लिया कि ऐसे वक्त में कमाई करके वो अपना भला कर लेंगे।क़ुरान में अल्लाह फरमाता है कि ये समझता है कि इसका माल इसकी हमेशा की जिंदगी की वजह बनेगा ,हरगिज नही ये जरूर हुतमा में डाला जाएगा।और हुतमा क्या अललाह की भड़काई हुवी आग है।Lock down में कुछ अच्छा भी सामने आया,मसलन क़ियामत का एक छोटा सा मंज़र।कैसे अपना ,अपनो से आंखे फेर लेता है। कोई किसी को ,कुछ भी देने को तैयार नही,जब तक कि मुनाफा न मिले।दोस्तो आओ, हम सब मिलकर तौबा करें, ए अल्लाह हमारे आमाल की सजा से ,हमने जमीन आसमान ,ख़ुश्की ओर तरी में जुल्म ओर जबर फैला दिया।हमे माफ कर अल्लाह ,हमसे न रूठ1 आज तेरे घर की चौखट हमे नसीब नही तो वो कैसे नसीब पैदा करे कि तुझे सज़दा कर सके।ए रब्बे क़ाबा तुझे ओर तेरे घर को हमारे सजदों की जरूरत नहीं, हम गुनाहगारो को तेरी जरूरत है, हमे बदल दे,हमारे नसीब बदल दे, दुनिया को फिर से निजात दे दे।इंसानियत पर रहम कर।
आज पूरी इंसानी बिरादरी एक अजीब कशमकश का शिकार है।जिंदगी की रफ़्तार कम तो हुवी लेकिन जिंदगी अपनी डगर पर चली जा रही है।बहुत कुछ ऐसा हुआ जिसका अंदाजा नही था।बहुत सारे भरम टूटे ।और एक बहुत बड़ा भरम ये भी टूट गया कि हम नही कमाएंगे तो क्या खायेंगे, साबित हुआ कि अल्लाह किसी को भूखा नही रखता ।एक अहम सवाल हमारे सामने जो आकर खुद ब खुद ही खड़ा हो गया कि आख़िर इंसानियत के साथ ऐसा क्यों हो रहा है ? तो बहुत सादा जवाब बनता है कि हम इंसानो ने अपने रब को नाराज कर दिया।किसने ,कब,कैसे किया यह तो हमसे ज्यादा कोई नही जानता।अल्लाह हमसे क़ुरान में फरमाता है कि हमारे बुरे आमाल की वजह से खुश्की ओर तरी में हमने एक कहर बरपा कर दिया है।मसाजिद वीरान हो गयी और कब्रिस्तान आबाद कर दिए हमने।ये सब हमारे अमलो की सजा है।CORONA के बाद जिन इंसानो ने अपने ईमान को ओर मजबूत कर लिया और पहले से ज्यादा जो अपने रब के नजदीक आजिज़ी ओर ख़ौफ़ वाली हालात के साथ उसको याद करने लगे उन के लिए ये हालात आजमाईश की मानिंद हैं लेकिन Corona ,के बाद भी जिनकी जिंदगी में तब्दीली नही आई ओर जो पहले से ज्यादा खुद को अल्लाह से दूर करने लगे,जिनकी जिंदगी की गुमरहकून चलत फिरत पहले सड़को ,मुहल्लों ,चौराहो तक सीमित थी लेकिन अब जो अपने ऐश मुर्दो के आशियानों ओर मुर्दो के पास रहकर पूरे कर रहे है समझ लो कि ये हालात उनको किस मोड़ पर ले गए।अभी भी कुछ नही हुआ ,हम सब गुनाहगार हैं, खताकार हैं, मुज़रिम हैं अपने रब की अदालत के लेकिन इस्तग़फ़ार ओर माफी अभी मिल सकती हैं।अभी हम सिर्फ कब्रो के करीब ही पहुंचे हैं अभी उसके अंदर नही गये, अल्लाह से माफी मांगते हैं कि वो जात हमे माफ करदे।छोटा बच्चा जब अपनी कॉपी में पेंसिल से गलती करता है तो उसे रबड़ से साफ करना सिखाया जाता है ,lekin हमारे इन गुनाहो को सिर्फ औऱ सिर्फ़ इस्तग़फ़ार से ही मिटाया जा सकता है।ऐसे वक्त में तौबा की जरूरत है।अफसोस लोगोँ ने इसे मोटी कमाई का सबब बना लिया।जरा तसव्वुर करो कि हजरत आदम अ० का एक बेटा जिसके पास कोई काम धन्धा नही है, पूरा शहर बन्द है, पूरी दुनिया बन्द है, घर पर बूढ़े म बाप हैं, भूखे बहन भाई और कमज़ोर शिफ़्त बच्चे हैं, ऐसे में जैसे कैसे करके बेचारा अपनी जेबो ओर घर के किसी कोने में पड़े पेसो को जोड़ कर ,अपने ही किसी भाई की दुकान पर जाता है ,क्या मिलता उसको मायूसी। बिसकिट्स, का एक पैकेट लेने के लिए उसे एक बड़ा मुनाफा देना पड़ रहा है।कैसे हो गए हम।सोचो वो दुकानदारों जिन्होंने ये समझ लिया कि ऐसे वक्त में कमाई करके वो अपना भला कर लेंगे।क़ुरान में अल्लाह फरमाता है कि ये समझता है कि इसका माल इसकी हमेशा की जिंदगी की वजह बनेगा ,हरगिज नही ये जरूर हुतमा में डाला जाएगा।और हुतमा क्या अललाह की भड़काई हुवी आग है।Lock down में कुछ अच्छा भी सामने आया,मसलन क़ियामत का एक छोटा सा मंज़र।कैसे अपना ,अपनो से आंखे फेर लेता है। कोई किसी को ,कुछ भी देने को तैयार नही,जब तक कि मुनाफा न मिले।दोस्तो आओ, हम सब मिलकर तौबा करें, ए अल्लाह हमारे आमाल की सजा से ,हमने जमीन आसमान ,ख़ुश्की ओर तरी में जुल्म ओर जबर फैला दिया।हमे माफ कर अल्लाह ,हमसे न रूठ1 आज तेरे घर की चौखट हमे नसीब नही तो वो कैसे नसीब पैदा करे कि तुझे सज़दा कर सके।ए रब्बे क़ाबा तुझे ओर तेरे घर को हमारे सजदों की जरूरत नहीं, हम गुनाहगारो को तेरी जरूरत है, हमे बदल दे,हमारे नसीब बदल दे, दुनिया को फिर से निजात दे दे।इंसानियत पर रहम कर।
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